Thursday 15 May 2014

काँटों को क़दमों में बसाना पड़ता है,
जब फूलों का बोझ उठाना पड़ता है.

हवा की औलादें जब आंधी बन जातीं,
ख़ुद का घोंसला ख़ुद को बचाना पड़ता है.

एतबार के खौफज़दा हो जाने पर.       (खौफज़दा = भयातुर)
पास मसीहाओं के जाना पड़ता है.

नासमझों और कमज़र्फों की महफ़िल में,      (कमज़र्फों = कम गहरे)
समझदार को चुप हो जाना पड़ता है.

जज़्बे को ज़िन्दा रखना आसान नहीं,
हर ख्वाहिश का गला दबाना पड़ता है.

सूरज का छोटा भाई है फिर भी क्यूँ,
हर चराग़ को सुबह बुझाना पड़ता है.

उसकी हथेली जब सूनी लगने लगती,
ख़ुद का लिक्खा नाम मिटाना पड़ता है.

इश्क़ में ऐसे मौके भी आते हैं जब,
ज़ख्म दिखे तो दर्द छुपाना पड़ता है.

घूम के सारी दुनिया हम भी देख चुके,
लौट के वापस घर को आना पड़ता है.

मेरे लाइक पेज को देखने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें,
https://www.facebook.com/pages/Surendra-Chaturvedi/1432812456952945?ref=hl

No comments:

Post a Comment