Friday 9 May 2014

धूप में जाकर सायों जैसी बातें करना,
बिन बच्चों के माओं जैसी बातें करना.

मेरी बातों का सच क्या है मैं ही जानूं,
जंगल में दरगाहों जैसी बातें करना.

चलते-चलते किसी मोड़ पर थम जाना फिर,
ख़ुद से तेज़ हवाओं जैसी बातें करना.

घाटी में आवाज़ें देकर चुप हो जाना,
हर इक बार गुफ़ाओं जैसी बातें करना.

वीरानों में यादों के कुछ शहर बसाकर,
उजड़ गए कुछ गाँवों जैसी बातें करना.

आज़ादी के लिए दुआएं देते हुए भी,
काटी हुई सज़ाओं जैसी बातें करना.

दीवाना हूँ, पागल हूँ मैं, इश्क़ में तेरे,
मुझसे पाक़ निग़ाहों जैसी बातें करना.

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