Monday 26 May 2014

पाप बहा कर पुण्य कमाने आते हैं,
मुझमें अक्सर लोग नहाने आते हैं.

वही लोग अपना कह देते हैं मुझको,
जो मुर्दों का बोझ उठाने आते हैं.

इक दीवार गुनाहों की हूँ मैं जिस पर,
लोग रात को नाम मिटाने आते हैं.

भीतर मेरे आने से डरते हैं सब,
बाहर से आवाज़ लगाने आते हैं.

उसकी घर में तन्हाई मिलती शोर नहीं,
जिस घर में अक्सर दीवाने आते हैं.

उस से भी मिलने को मन करता है क्यूँ,
जिसे जुदा होने के बहाने आते हैं.

जिन लम्हों ने कभी अलविदा कहा मुझे,
वो लम्हे अब मुझे बुलाने आते हैं.

जो आईने टूट गए ख़ुद के आगे,
वो भी अब मुझसे टकराने आते हैं.

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