Sunday 11 May 2014

ख़ुद में ही रह के वक़्त बिताने का शौक़ है,
आने का शौक़, ना कही जाने का शौक़ है.

काग़ज़ क़लम से दोस्ती रखता है  इसलिए,
इक नाम उसको लिख के मिटाने का शौक़ है.

दुश्मन के घर गया तो यही सोच कर गया.
शायद उसे भी हाथ मिलाने का शौक़ है.

बैठे हैं हम दरख़्त के साये में इसलिए,
सायों की तरह उम्र बिताने का शौक़ है.

सूखी हुई नदी के किनारों की तरह हैं,
रिश्ते बना के हमको निभाने का शौक़ है.

ऐसे ही पंछियों के साथ हम रहे जिन्हें,
खाने का शौक़ है, ना कमाने का शौक़ है.

वो लोग ही रहेंगे मेरे दिल में उम्र भर,
ग़ज़लों को जिन्हें सुनने-सुनाने का शौक़ है.

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